बालकों के समाजीकरण में परिवार की भूमिका एवं सामाजीकरण की प्रक्रिया:एक विवेचना

Authors

  • डा० मुनेंदर कुमार प्राचार्य शिक्षा विभाग किशन इंस्टीट्यूट ऑफ टीचर ऐजुकैशन, मेरठ (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ) उत्तर प्रदेश

Keywords:

समाजीकरण, नवजात शिशु, संस्कृति  का हस्तान्तरण, सांस्कृतिक मूलयों

Abstract

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नवजात शिशु को सामाजिक प्राणी बनाती है। इस प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति  सामाजिक प्राणी नहीं बन सकता। इसी से सामाजिक व्यक्तित्व  का विकास होता है। सामाजिक-सांस्कृमतक विरासत के तत्वों का परिचय भी इसी से प्राप्त होता है। समाजीकरण से न केवल मानव जीवन का प्रभाव अखण्ड तथा सतत रहता है, बल्कि इसी से मानवोमचत गुणों का विकास भी होता है और  व्यक्ति सभ्य व  सुसंस्कृत भी बनता है। संस्कृति  का हस्तान्तरण भी समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा ही होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया के बीना व्यक्ति सामाजिक गुणों को प्राप्त नहीं कर सकता है। अत: यह एक महत्वपूर्ण  प्रक्रिया मानी जाती है। समाजीकरण की प्रक्रिया में उन मानकों, मूलयों और विश्वासों को प्राप्त किया  जाता है, जिन्हें समाज में महत्व क्रिया जाता है। इस तरह यह सांस्कृतिक मूलयों, प्राथमिकताओं और प्रतिमानों को बच्चों के व्यवहार में सम्मलित करने की प्रक्रिया है। यह विभन्न प्रक्रियाओं, शैक्षिक संस्थाओं और लोगों द्वारा सम्पन्न होती है।

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Published

2017-06-30

How to Cite

डा० मुनेंदर कुमार. (2017). बालकों के समाजीकरण में परिवार की भूमिका एवं सामाजीकरण की प्रक्रिया:एक विवेचना. Universal Research Reports, 4(2), 235–239. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/102

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Original Research Article