मन्नू भण्डारी के उपन्यासों में स्त्री-चेतना का विश्लेषण
Keywords:
द्भुत, क्रियाओं और दीवारAbstract
मन्नू भण्डारी अपनी कहानियों में परिवेश को पूरा महत्त्व देती हैं। आस-पास का जीवन, रहन-सहन, प्रकृति का चित्रण उनके शिल्प को प्रामाणिक बनाता है। ‘यही सच है‘ में वह संजय की प्रतीक्षा कर रही दीपा के अंदर चल रहे आंतरिक ऊहा-पोह को व्यक्त करने के लिए पहले उस तरह का माहौल्र बनाती हैं। कहानी के आरंभ में ही वह लिखती हैं-“सामने आँगन में फैली धूप सिमटकर दीवारों पर चढ़ गई और कंधे पर बस्ता ल्रटठकाए नन््हे -नन्हे बच्चों के झुंड-के-झुंड दिखाई दिए, तो एकाएक ही मुझे समय का आभास हुआ। घंटा भर हो गया यहाँ खड़े-खड़े और संजय का अभी तक पता नहीं! झुँझलाती-सी मैं कमरे में आती हूँ कोने में रखी मेज पर किताबें बिखरी पड़ी हैं, कुछ खुली, कुछ बंद। एक क्षण मैं उन्हें देखती रहती हूँ, फिर निरुद्देश्य-सी कपड़ों की अलमारी खोलकर सरसरी-सी नजर से कपड़े देखती हूँ।
References
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