अल्वेद में व्याकरणदर्शन
Keywords:
व्याकरणदर्शनAbstract
प्रत्याहार सूत्रों को माहेश्वर सूत्र भी कहते हैं ।1 आचार्य पाणिनि ने शिव जी से अक्षरसमाम्नाय के ज्ञान को प्राप्त कर सम्पूर्ण व्याकरण की रचना की ।2 उपमन्यु ने इन्हीं सूत्रों को आदिसूत्र कहा है ।3 पाणिनि प्राचीन विद्वानों ने भी प्रत्याहारों का प्रयोग किया है । उज्जवलदत्त और सृष्टिधर के उल्लेख से ज्ञात होता है कि अपिशलि ने ऐच्, भषृ इन प्रत्याहारों का प्रयोग किया है ।4 पाणिनिकृत उणादिसूत्र में भी ‘´मन्ताड्डः’ सूत्रे में ´म् प्रत्याहार का प्रयोग प्राप्त होता है ।5 नागेशभट्ट द्वारा उद्धृत ऐन्द्र व्याकरण के उल्लेाख् से यह ज्ञात होता है कि इन्द्र प्रत्याहारों के अन्त में प्रयुक्त अनुबन्धों के उपयोग से परिचित थे ।6 उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि पाणिनि पुरातन आचार्य भी प्रत्याहारों के प्रयोग से परिचित थे ।
References
नन्दिकेश्वर काशिका श्लोक 1: (नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवप´्चवारम्। उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।।)
पाणिनीय शिक्षा श्लोक 57 (येनाक्षर समाम्नायमधिगम्य महेश्वरात्। कृतस्नं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मै पाणिनये नमः।।)
महाभाष्यप्रदीपप्रकाश पृ॰ 299: (काशिकामादिसूत्राणां नन्दिकेशकृतां शुभाम्। लोकोपकारिणीं दिव्यां व्याकरोमि य थामति।।)
महाभाष्य प्रदीप प्रकाश, भूमिका, पृ॰ 14
पाणिनीय उणादि सूत्र संख्या-1.113
बृहच्छब्देन्दुशेखरः ‘इन्द्रोऽथाह-अन्त्यवर्णसमुद्भूता धातवः परकीर्तिता। महाभाष्य प्रदीपप्रकाश भूमिका, पृ॰ 14 उद्धृतम्।