माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियांे की पारिवारिक संरचना का उनके समायोजन तथा शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव - एक तुलनात्मक अध्ययन

Authors

  • राहुलकांत

Keywords:

परिवार, पारिवारिक संरचना

Abstract

बालक को सभ्य मानव बनाने का कार्य बच्चे के पैदा होते ही शुरू हो जाता है, स्वामी दयानन्द जी कहते है कि बच्चा माँ के गर्भ से ही शिक्षा ग्रहण करनी शुरू कर देता है तथा जीवन पर्यन्त सीखता रहता है। मानव जीवन की बगिया की शोभा शिक्षा के बिना बदसूरत दिखाई पड़ती है। आँखें होते हुए भी बिना शिक्षा के मानव अंधा प्रतीत होता है। वह सभी के साथ पशुओं तथा दानवों जैसा व्यवहार करता है अर्थात् शिक्षा वह उजाला है जिसके द्वारा बालक की समस्त मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, अध्यात्मिक तथा नैतिक शक्तियों का विकास होता है, जिससे बच्चा अपने देश की संस्कृति तथा सभ्यता को बनाए रखते हुए, अपने चरित्र का विकास करते हुए, समाज का सुसंगठित नागरिक बनकर समाज का विकास करने के लिए प्रेरित होता है। जिस तरह शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करके उसे विद्वान, चरित्रवान तथा बलशाली बनाती है उसी प्रकार समाज की उन्नति के लिए भी शिक्षा भागीदार होती है, क्योंकि शिक्षा ही वह साधन है जो समाज के रीति रिवाज, संस्कृति, उच्च आदर्शों, परम्पराओं को भावी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करती है और बालक के मन में देश-प्रेम और त्याग की भावना का दीप जलाती है। जब ऐसी भावनाओं, आदर्शों तथा त्याग से तैयार हुए बालक समाज और देश की सेवा का व्रत धारण करके मैदान में उतरेंगे तथा अपने देश के लिए अपने जीवन को त्यागने से भी दूर नहीं हटेंगे, तो ऐसे समाज को उन्नति के मार्ग पर बढ़ने के लिए कौन रोक पायेगा।

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Published

2023-06-30

How to Cite

राहुलकांत. (2023). माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियांे की पारिवारिक संरचना का उनके समायोजन तथा शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव - एक तुलनात्मक अध्ययन. Universal Research Reports, 10(2), 153–161. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1106

Issue

Section

Original Research Article