श्रीमद्भगवद्गीतानुसार मोक्ष
Keywords:
आत्ममुक्ति, मोक्ष, जीवात्मा और परमात्मा, भौतिकवादी, वेदान्तशास्त्र, आत्मज्ञानAbstract
साहित्य दर्पणकार ने काव्य को चतुवर्ग की प्राप्ति का साधन बताया है अर्थात् अच्छा काव्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है एक दृष्टान्त में शान्त रस का ऐसा सुन्दर दृष्टान्त दिया है कि जीवन की मन्दाकिनी का पूरा आनन्द इसी योगी ने ले लिया जिसने इस भाव साम्राज्य का अनुभव किया।
हे भगवान वह कौन-सा दिन होगा जब फटी गुदड़ी का टुकड़ा लपेटे गली में घूमते हुए किसी नगरवासी से भय पूर्वक, किसी से कुतुहलवश, किसी से दया पूर्वक देखा गया मै वास्तविक आनन्द व आत्मज्ञान के अमन्द अमृतमय रस आनन्द से निद्रायमाण समाधि मग्न होऊंगा। निशंक कौआ मेरे हाथ पर रखी हुई भिक्षा को विश्वास पूर्वक खाएगा।
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NA
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2024-08-20
How to Cite
सिंह ज. (2024). श्रीमद्भगवद्गीतानुसार मोक्ष. Universal Research Reports, 10(1), 227–234. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1322
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