संस्कृत-साहित्य संस्कृत वैदिक, लौकिक और पौराणिक साहित्य में कृषि एवं कृषक का महत्त्व
Keywords:
अर्थव्यवस्था, सस्यसम्पदा, सामाजिक जीवन, गौरवपूर्ण इतिहासAbstract
भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा प्राचीनकाल से ही भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक जीवन ओर गौरवपूर्ण इतिहास के सन्दर्भ में कृषि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मानव सभ्यता के आदिकाल अथवा सभ्य जीवन का प्रारंभ पशुपालन एवं कृषि के साथ ही होता है। ऋग्वैदिक काल में कृषि की पूर्ण विकास हो चुका था। प्राचीन मनीषियों ने सहस्त्राब्दी पूर्व मानवीय सभ्यता के शुभ-चरण में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के महत्त्व और मूल्य समझ लिया था और पंचमहाभूतों के पारस्परिक समन्वय से उत्पन्न वन्य शस्य उत्पादों को संस्कारित करते हुए व्यवस्थित रूप में भूमि पर उगाना प्रारंभ किया उन्हें ज्ञात था कि कृषि ही राष्ट्र समृद्धि का मूलभूत कारण है प्रकृत शोध-पत्र में वैदिक, लौकिक और पौराणिक साहित्य के कृषि एवं कृषक की महत्ता को प्रस्तुत किया जा रहा है।
References
संपादक आचार्य बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा संस्कृत सोरिज ऑफिस, वाराणसी, 1999
अथर्ववेद संहिता: सम्पादक पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य, शांतिकुंज, हरिद्वार
अर्थवेद संहिता: सम्पादक पण्डित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, स्वाध्याय मंडल, पारड़ी
अथर्ववेद सहित: संपा. शंकर पाडुंरंगपंडित, रामदास अकादमी वाराणसी, 1889
ऋग्वेद संहिता : पं. श्रीपाद दामोदार सातवलेकर, स्वाध्याय मंडल, पारडी
ऋग्वेद संहिता: सम्पादक रामगोविन्द त्रिवेदी, चौखम्बा विद्या भवन वाराणस 2003
तैत्तिरीय संहिता: सम्पादक पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, स्वाध्याय मंडल, पारड़ी
पद्म पुराण: राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, दिल्ली
महाभारत: नीलकंठीटीका सहित राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, दिल्ली
यजुर्वेद सहिंता: संपादक पं. श्री पाद दामोदार सातवलेकर, स्वाध्याय मंडल, पारडी
यजुर्वेद संहिता: पं. वासुदेव शर्मा, चोखम्बा संस्कृत संस्थान 2003
रामायण: संपादक रामतेज पाण्डेय चौखम्बा संस्कृत सीरिज ऑफिस, वाराणसी |