संस्कृत-साहित्य संस्कृत वैदिक, लौकिक और पौराणिक साहित्य में कृषि एवं कृषक का महत्त्व

Authors

  • सीमा रानी शोध-छात्रा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरक्षेत्र शोध-आलेख सार

Keywords:

अर्थव्यवस्था, सस्यसम्पदा, सामाजिक जीवन, गौरवपूर्ण इतिहास

Abstract

भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा प्राचीनकाल से ही भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक जीवन ओर गौरवपूर्ण इतिहास के सन्दर्भ में कृषि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मानव सभ्यता के आदिकाल अथवा सभ्य जीवन का प्रारंभ पशुपालन एवं कृषि के साथ ही होता है। ऋग्वैदिक काल में कृषि की पूर्ण विकास हो चुका था। प्राचीन मनीषियों ने सहस्त्राब्दी पूर्व मानवीय सभ्यता के शुभ-चरण में प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के महत्त्व और मूल्य समझ लिया था और पंचमहाभूतों के पारस्परिक समन्वय से उत्पन्न वन्य शस्य उत्पादों को संस्कारित करते हुए व्यवस्थित रूप में भूमि पर उगाना प्रारंभ किया उन्हें ज्ञात था कि कृषि ही राष्ट्र समृद्धि का मूलभूत कारण है प्रकृत शोध-पत्र में वैदिक, लौकिक और पौराणिक साहित्य के कृषि एवं कृषक की महत्ता को प्रस्तुत किया जा रहा है।

References

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Published

2017-09-30

How to Cite

रानी स. (2017). संस्कृत-साहित्य संस्कृत वैदिक, लौकिक और पौराणिक साहित्य में कृषि एवं कृषक का महत्त्व. Universal Research Reports, 4(4), 39–41. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/151

Issue

Section

Original Research Article