बालकों में भाषिक विकास

Authors

  • अन्जू रानी anjumitter@gmail.com

DOI:

https://doi.org/10.36676/urr.v11.i5.1510

Keywords:

भाषिक विकास

Abstract

‘बाल्यावस्था जीवन की आधारभूत अवस्था है।’ जीवन के शुरू के वर्षों मे अभिवृत्तियों, आदतों और व्यवहार के प्रकार पक्के हो जाते हैं। बालरूप की शक्ति यही है जिसका अनभ्व हम काव्य, संगीत, चित्रा एवं मूर्ति मं करते हैं। भारतीय दृष्टि बाल-सौंदर्य की अनुभूति में रूप की पूर्णता उसकी शक्ति का सा्रेत एवं स्वरूप है वह रूप, जिसकी पूर्णता मे  प्रत्येक अंग अपने प्रभाव के साथ, सगंत में संवादी स्वर की भांति, अंगी में समरस हो जाता है सतंलुन, सामंजस्य आदि रूप संपदा इतनी पूर्ण कि कुछ भी चाहने को शेष नहीं रूप एवं रूपित, बाह्य और आभ्यंतर, शरीर एवं आत्मा का ऐसा आश्चर्यजनक अभेद जिसमे सार के सारे भेद गल गए हैं, 

References

राम मनोहर लोहिया, ‘‘गाँधीजी के दोष’’, समता और सम्पन्नता (इलाहाबाद: लोकभारती, 1992), सं0 - ओंकार शरद पृ0 208

रवीन्द्रनाथ टैगोर, ‘समस्या’, रवीन्द्रनाथ के निबंध, भाग-1, (दिल्ली: साहित्य अकादमी, 2009)

लोहिया, ऊपर संदर्भ 9, पृ0 209

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Published

2024-12-29
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DOI: 10.36676/urr.v11.i5.1510
Published: 2024-12-29

How to Cite

अन्जू रानी. (2024). बालकों में भाषिक विकास. Universal Research Reports, 11(5), 65–70. https://doi.org/10.36676/urr.v11.i5.1510

Issue

Section

Original Research Article