महात्मा गांधी का सामाजिक चिंतन : सत्य, अहिंसा और ग्रामस्वराज का दर्शन

Authors

  • डॉ. विनीता प्रिया एम. ए. (इतिहास), एम. ए. (शिक्षा), पी एच. डी. माध्यमिक शिक्षक ( सामाजिक विज्ञान), राजकीयकृत +2 उच्च विद्यालय ओहारी (नवादा, बिहार)

Keywords:

महात्मा गांधी, सामाजिक चिंतन, सत्य, अहिंसा, ग्रामस्वराज, विकेन्द्रीकरण, आत्मनिर्भरता, नैतिक मूल्य

Abstract

महात्मा गांधी का सामाजिक चिंतन भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति में गहन परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करने वाला दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण है, जिसका मूल आधार सत्य, अहिंसा और ग्रामस्वराज जैसे सिद्धांतों पर टिका हुआ है। गांधीजी ने सत्य को जीवन का सर्वोच्च मूल्य माना, जिसे न केवल व्यक्तिगत आचरण में, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाओं में भी अपनाने पर बल दिया। अहिंसा को उन्होंने केवल हिंसा का अभाव नहीं, बल्कि सक्रिय प्रेम, सहिष्णुता और करुणा के रूप में परिभाषित किया, जो मानव संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने का सशक्त साधन है। ग्रामस्वराज के माध्यम से उन्होंने विकेन्द्रीकृत, आत्मनिर्भर और नैतिक मूल्यों पर आधारित ग्राम-व्यवस्था का आदर्श प्रस्तुत किया, जिसमें आर्थिक समानता, श्रम की गरिमा और सामुदायिक सहयोग को महत्व दिया गया। यह चिंतन न केवल स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना, बल्कि आज भी सतत विकास, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक सशक्तिकरण के लिए प्रासंगिक है। गांधीजी के इन सिद्धांतों का सामूहिक उद्देश्य व्यक्ति और समाज के नैतिक उत्थान के साथ-साथ एक न्यायपूर्ण, समरस और अहिंसक सामाजिक व्यवस्था की स्थापना था।

References

गाँधी, महात्मा (1940), सत्य का अर्थ (आत्मकथा), पाइफ़िन: नवजीवन प्रकाशन मंदिर, पृ. 115-154

पारीक, डॉ.(2004), विचारधारा, गांधीवाद: सिद्धांत और व्यवहार, दिल्ली: साहित्य भवन, पीपी. 90-110

मूर्ति, विभूतिनारायण (2012), गांधी का दर्शन और समकालीन समाज, जयपुर: राजस्थान पाठ अकादमी, पृ. 45-87

डाल्टन, डेनिस (1993), महात्मा गांधी: कार्रवाई में अहिंसक शक्ति, कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस. पृ. 66-112

परेल, एंथोनी जे. (2001), गांधी: हिंद स्वराज और अन्य लेखन, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस. पृ. 31-59

पारेख, भीखू(2001), गांधी: एक अति संक्षिप्त परिचय, ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।

चटर्जी, मार्गरेट (1983), गांधी के धार्मिक विचार, लंदन: मैकमिलन प्रेस |

अय्यर, राघवन एन.(1973), महात्मा गांधी के नैतिक और राजनीतिक विचार, ऑक्सफोर्ड: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ।

हार्डिमैन, डेविड (2003), गाँधी इन हिज़ टाइम एंड अवर्स: द ग्लोबल लिगेसी ऑफ़ हिज़ आइडियाज़. नई दिल्ली: परमानेंट ब्लैक |

Downloads

Published

2024-12-30

How to Cite

डॉ. विनीता प्रिया. (2024). महात्मा गांधी का सामाजिक चिंतन : सत्य, अहिंसा और ग्रामस्वराज का दर्शन. Universal Research Reports, 11(5), 106–111. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1589

Issue

Section

Original Research Article