गांधीजी के सामाजिक चिंतन में शिक्षा का स्वरूप और उद्देश्य

Authors

  • डॉ. विनीता प्रिया एम.ए. (इतिहास), एम.ए. (शिक्षाशास्त्र), पी एच.डी. माध्यमिक शिक्षक (सामाजिक विज्ञान), राजकीयकृत +2 उच्च विद्यालय ओहर (नवादा, बिहार)

Keywords:

महात्मा गांधी, सामाजिक चिंतन, शिक्षा का स्वरूप, शिक्षा का उद्देश्य, नई तालीम

Abstract

महात्मा गांधी के सामाजिक चिंतन में शिक्षा का स्वरूप और उद्देश्य केवल साक्षरता तक सीमित नहीं था, बल्कि यह व्यक्ति के नैतिक, बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक विकास का समग्र माध्यम था। गांधीजी का मानना था कि शिक्षा का मुख्य लक्ष्य ऐसे नागरिक तैयार करना है जो आत्मनिर्भर, जिम्मेदार, सत्यनिष्ठ और समाज के प्रति सेवा-भाव रखने वाले हों। उन्होंने 1937 के वर्धा शिक्षा सम्मेलन में ‘नई तालीम’ की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें शिक्षा को श्रम, उत्पादन और जीवनोपयोगी कौशल से जोड़ने पर जोर दिया गया। उनके अनुसार, मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा, कार्य और शिक्षा का एकीकरण, नैतिक मूल्यों का समावेश, तथा ग्राम स्वराज की दिशा में प्रशिक्षित करना, शिक्षा के मूल उद्देश्य होने चाहिए। गांधीजी ने शिक्षा को केवल आर्थिक साधन के रूप में नहीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र निर्माण, सामाजिक समरसता, आत्मसंयम, और सतत विकास के साधन के रूप में देखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि वास्तविक शिक्षा वह है जो व्यक्ति को सोचने, समझने और सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करे, साथ ही उसमें सेवा और सहयोग की भावना विकसित करे।

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Published

2025-06-28

How to Cite

प्रिया ड. व. (2025). गांधीजी के सामाजिक चिंतन में शिक्षा का स्वरूप और उद्देश्य. Universal Research Reports, 12(2), 220–224. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1595

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Original Research Article