शिक्षा तथा महिला सशक्तिकरण
Keywords:
शिक्षा, प्रदत्त राजनीतिक व सांस्कृतिक, संविधान की धारा 45Abstract
शिक्षा मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य होने के साथ-साथ वांछनीय ल्श्यों कौ पूर्ति का एक उपयोगी साधन भी है। भारत में स्वतंत्रता के पश्चात, यह व्यक्ति के व्यक्तित्व व बुद्धि का विकास कर, उसे आर्थिक, संविधान द्वार प्रदत्त राजनीतिक व सांस्कृतिक कार्यो को सम्पन्न करने के योग्य बनाती समानता के है। शिक्षा को एक ऐसे उपकरण के रूप में भी मान्यता दी गयी है, अधिकारों ने जिसकी सहायता से समाज में परिवर्तन व विकास के अभीष्ट लक्ष्यों राजनीति, को प्राप्त किया जा सकता है। यहीं कारण है कि मानव अधिकारों अर्थव्यवस्था और के सार्वभीमिक घोषणा-पत्र में शिक्षा को प्रत्येक मनुष्य के मूल समाज म बहुविध अधिकारों में से एक माना गया है। भूमिका निर्वाह करने के लिए महिलाओं का आहवान करने उनकी स्थिति सुधारने हेतु नये-नये आयाम प्रस्तुत किये। जब महिला शिक्षा की चर्चा की जाती हैं तो स्पष्टत: संविधान की धारा 45 में प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के उद्देश्य से, निशुल्क देखा जा सकता है साथ ही अनिवार्य शिक्षा को राज्य का एक 'नीतिनिर्देशक' सिद्धांत घोषित किया जाना शेष हैं। इसमें कहा गया-'राज्य इस संविधान के कार्यान्वित आवश्यकता व उपयोगिता को प्रति मानव समाजों की समझ क्रमशःमें स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए किये ये जाने के समय से दस वर्ष के अंदर सब बच्चों के लिए, जब बढ़ रही है। विश्वभर में स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए किये निशुल्क एवं अनिवार्य, गये आंदोलनों में, उनकी निम्न स्थिति को बदलने के लिए, शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।' को एक महत्वपूर्ण साधन माना गया है।
References
महिला सशक्तीकरण : डॉ बलबीर सिंह
नारी शिक्षा : एक महत्वपूर्ण पहल : डॉ. प्रदीप कमार
विकास और महिला: डॉ. विश्वकान्ता प्रसाद
महिला और समाज : डॉ. शिव प्रसाद
महिला उत्पीड़न : डॉ. अशोक कुमार
नारी जीवन और चुनौतियां : डॉ. चन्दमणि सिंह
नारी के बढ़ते कदम : डॉ. विनय कुमार
भारत में महिला शिक्षा : डॉ. कांति कुमार
नारी जीवन : विनोद सिंह