श्रीमद्भगवद गीता में जीवन मूल्य और पुरुषार्थ - चतुष्टय
Keywords:
जीवन में मूल्यों, अमूल्य योगदानAbstract
किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का बड़ा योगदान होता है, क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की पहचान की जाती है। शाब्दिक अर्थ में देखा जाए तो मूल्य का अर्थ कीमत होता है। परन्तु मानवता के विकास में इन जीवन मूल्यों का अमूल्य योगदान होता है, क्योंकि जिस समाज के लोगों में जीवन मूल्य उच्च होंगे वही पूरी मानवता के लिए आदर्श स्थापित कर सकेगा। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। भारत के इतिहास का एक ऐसा युद्ध जो दो परिवारों के बीच घटित हुआ था, जिसका उद्देश्य था धर्म का पालन करना तथा सत्य को जीत हासिल कराना। आज भी मनुष्य जब विषम परिस्थितियों में उलझा होता है तो गीता का ज्ञान उसको सही रास्ता दिखाता है। गीता में जो जीवन मूल्य वर्णित हैं वे आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। तभी तो गीता का प्रचार-प्रसार संपूर्ण जगत में हो पाया है। भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी गीता पर कार्य हो रहा है। गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो देशकाल, समयकाल की परिधि में न बंधकर संपूर्ण मानवता को स्फूर्तिदायक संदेश देता है।
References
स्वामी विवेकानन्द
रामायण
गीता (श्रीमद्भगवदगीता)
श्रीमद्भगवदगीता
श्रीमद्भगवदगीता
श्रीमद्भगवदगीता
श्रीमद्भगवदगीता 2/3 श्लोक
उपरिवत्, अध्याय 2 श्लोक 5वां (2/5)
एकदशेपनिषद तृतीय प्र. पाठकखण्ड 16, 17
महर्षि वेदव्यास-महाभारत-कर्णपर्व, पृ. 58-69
यजुर्वेद, अध्याय-18, द्वितीय प्रश्न मंच 8-13
गोस्वामी तुलसीदास-रामचरितमानस, उत्तरकाण्ड, दोहा, क्रमांक 1
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