मानव जीवन के उत्कर्ष में योग की उपादेयता
Keywords:
योंग, सुख समृधि, तनावग्रस्त, क्रोधीAbstract
अत्यधिक सुख समृधि व अधिक की चाह ने मनुष्य जीवन को तनावग्रस्त बना दिया है | मनुष्य ने अपने आपको लोभी, क्रोधी व अधर्मी बना लिया है | इसी कारण वः स्वार्थी प्रवर्ती का बनता जा रहा है |वर्तमान समय में योग का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है क्योंकि हमारी भाग्दौध और व्य्सस्ता के कारण रोगों ने हमारे शरीर को घेर लिया है |
References
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Published
2017-12-30
How to Cite
डा० वीरेंदर कुमार, & सुमन. (2017). मानव जीवन के उत्कर्ष में योग की उपादेयता. Universal Research Reports, 4(8), 109–113. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/261
Issue
Section
Original Research Article