मानव जीवन के उत्कर्ष में योग की उपादेयता

Authors

  • डा० वीरेंदर कुमार M.A. Yoga, Department of Yoga, CRSU-Jind (Haryana)
  • suman M.A. Yoga, Department of Yoga, CRSU, Jind

Keywords:

योंग, सुख समृधि, तनावग्रस्त, क्रोधी

Abstract

अत्यधिक सुख समृधि व अधिक की चाह ने मनुष्य जीवन को तनावग्रस्त बना दिया है | मनुष्य ने अपने आपको लोभी, क्रोधी व अधर्मी बना लिया है | इसी कारण वः स्वार्थी प्रवर्ती का बनता जा रहा है |वर्तमान समय में  योग का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है क्योंकि हमारी भाग्दौध और व्य्सस्ता के कारण रोगों ने हमारे शरीर को घेर लिया है |

References

जीवन दर्शन : स्वामी रामदेव (63 पेज न० )

जीवन दर्शन : स्वामी रामदेव (64 पेज न० )

जीवन दर्शन : स्वामी रामदेव (65 पेज न० )

जीवन दर्शन : स्वामी रामदेव ( 75 पेज न० )

प्राकर्तिक चिकित्सा व योग : ( 135 पेज न० )

प्राकर्तिक चिकित्सा व योग : ( 135 पेज न० )

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Published

2017-12-30

How to Cite

डा० वीरेंदर कुमार, & सुमन. (2017). मानव जीवन के उत्कर्ष में योग की उपादेयता. Universal Research Reports, 4(8), 109–113. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/261

Issue

Section

Original Research Article