महाकवि कालिदास की कृतियों में प्रकृति प्रेम

Authors

  • Deepak शोधार्थी ,गुरू जम्भेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान,गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार।
  • कविता रानी सहायक प्राध्यापिका( संस्कृत ),राजकीय कन्या महाविद्यालय, हिसार।

Keywords:

प्रकृति मानव, कृतज्ञता व्यक्त

Abstract

सृष्टि के आदि से अद्य पर्यन्त प्रकृति मानव की सहचरी रही है। मानव भी अपनी सहचरी के संरक्षण हेतु प्रयासरत रहा है। प्रकृति के क्रीडाड्गण में मनुष्य का सर्वतोमुखी विकास निर्भर है। यही कारण है कि मानव ने अपनी कृतियों में भी प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है। ‘पर्यावरण‘ शब्द की व्युत्पत्ति परि उपसर्ग पूर्वक आवरण शब्द के योग से हुई है जिसका अर्थ है- चारों ओर से घिरा हुआ। महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य में सर्वश्रेष्ठ कवि हैं जोकि कवि कुलगुरू के रूप में भी विख्यात है। महाकवि कालिदास महान चिंतक, कवि, दार्शनिक तथा दूर-दृष्टा होने के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी थे। हम कालिदास की कृतियों में मनुष्य का प्रकृति के साथ अनेक प्रकार से संबंध देख सकते हैं।

References

अभिज्ञानशाकुन्तलम् एवं संस्कृत साहित्य इतिहास ( लक्ष्मी पब्लिशिंग हाउस) 1/4, पृ संख्या 26

अभिज्ञानशाकुन्तलम - कालिदास 4/9

अभिज्ञानशाकुन्तलम् - कालिदास 4/5

अभिज्ञानशाकुन्तलम् - कालिदास 2/10

रघुवंशम् - कालिदास 1/42

रघुवंशम् - कालिदास 1/43

रघुवंशम् - कालिदास 1/10

रघुवंशम् - कालिदास 4/50

संस्कृत साहित्यातिहास- डा0 ओमप्रकाश सारस्वत, प्रकाशक भारतीय संस्कृत भवन पृ0 सं0 26

मेघदूतम् - पूर्वमेघ 5, पृ0 सं0 13

मेघदूतम् - कालिदास, पूर्वमेघ 29, पृ0 सं0 65

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Published

2017-12-30

How to Cite

दीपक, & कविता रानी. (2017). महाकवि कालिदास की कृतियों में प्रकृति प्रेम. Universal Research Reports, 4(8), 117–120. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/263

Issue

Section

Original Research Article