चासणी कविता संग्रह में शिल्प विधान

Authors

  • डा० आशुतोष कौशिक शान्त नगर, काठ-मण्ड़ी, रोहतक।

Keywords:

चासणी कविता, शिल्प विधान, प्रस्तुतीकरण

Abstract

शिल्प वह तत्व हैं जिसके माध्यम से रचना का प्रस्तुतीकरण होता हैं, अर्थात कवि अपनी रचना के प्रस्तुतीकरण में जिन उपकरणों अथवा उपादानों का प्रयोग करते हैं वे सभी विधान शिल्प के तत्व कहलाते हैं। उदाहरण के लिए भाषा, अलंकार, छन्द, कहावतें, संगीतात्मकता आदि। शर्मा जी ने ‘चासणी’ कविता संग्रह में 19 कविताओं को प्रस्तुत किया है। शर्मा जी ने इन कविताओं में हमें हरियाणवी संस्कृति से रूबरू करवाया है। “इन कविताओं में कवि ने न तो ब्रजी को अपनाया है न ही अवधी को तथा न ही खड़ी बोली को, बल्कि हमारे घर की भाषा हरियाणवी को अपनाया है। इसलिए इसे ‘गोचणी’ कहा जा सकता है। यह हरियाणा की चासणी है। इसे चखकर हरियाणवी का स्वाद लिया जा सकता है। ‘चासणी’ नामक कविता संग्रह में बिम्बों व प्रतीकों को ढूँढ़ना व्यर्थ है। अतः शर्मा जी ने इन कविताओं को हरियाणवी फूलझड़ियाँ भी कहा है।”

References

रामस्वरूप चतुर्वेदी: भाषा और संवेदना पृ0 11

मैथिली प्रसाद भारद्वाजः पाश्चात्य काव्य शास्त्र के सिद्वान्त पृ0 108

डा0 विश्व बन्धु शर्मा: चासणी कविता संग्रह पृ 11

डा0 विश्व बन्धु शर्मा: चासणी कविता संग्रह पृ 28

ड़ाॅ विश्वबन्धु शर्मा: चासणी कविता संग्रह पृ0 9

सुमित्रा नन्दन पंत:पल्लव विज्ञापन पृ0 22

डा0 विश्वबन्धु शर्मा:चासणी कविता संग्रह पृ08

डा0 विश्वबन्धु शर्मा:चासणी कविता संग्रह पृ011

डा0 विश्वबन्धु शर्मा:चासणी कविता संग्रह पृ015

डा0 विश्वबन्धु शर्मा:चासणी कविता संग्रह पृ017

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Published

2017-12-30

How to Cite

कौशिक ड. . आ. (2017). चासणी कविता संग्रह में शिल्प विधान. Universal Research Reports, 4(10), 45–48. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/309

Issue

Section

Original Research Article