ग्रामीण बैंक की भूमिकाएवं समस्याओं पर एक विवेचना

Authors

  • साहु व्याख्याता श्रम एवं समाज कल्याण मवभाग, सीता राम साहु कॉलेज, नवादा. मबहार |

Keywords:

ग्रामीण, बैंक

Abstract

जहाँ आज हम आर्थिक उदारीकरण के परिवेश को अपना रहे है। ऐसी स्थिति में कृषि एवं ग्राम उद्योग का विकास अपेक्षाकृत तेजी से नहीं हो रहा है इसका जहाँ एक और ग्रामीणों की ऋण ग्रस्तता है दूसरी और संसाधनों के पर्याप्त होने के बाद भी वित्त के आभाव में उत्पादन प्रमावित हो रहा है। कृषि अपेक्षाकृत असंगठित व्यवसाय है। इसकी सफलता या असफलता बहुत कुछ मौसम पर निर्मर होती है। इसके अलावा किसानों द्वारा लिए जाने वाले ऋणों में स्पष्ट रूप से उत्पादक और अनुत्यादक में मेद कर पाना आसान नहीं होता। इसलिये बैंकों ने के लिये या उससे संबंधित दूसरे कार्यो के लिए ऋण देने में प्राय: दिलचस्पी नहीं दिखाई है। और लम्बे असे तक किसान ऋण के लिये मुख्य रूप से सहूकार और महाजनों पर निर्भर रहे हैं।

References

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Published

2017-12-30

How to Cite

साहु ओ. प. (2017). ग्रामीण बैंक की भूमिकाएवं समस्याओं पर एक विवेचना. Universal Research Reports, 4(13), 172–175. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/419

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Section

Original Research Article