मौर्य काल के धार्मिक दशा पर एक विवेचना

Authors

  • Kumari Research Scholar, Department of A.I.& A.S. M.U., Bodh Gaya
  • Alam F

Keywords:

धार्मयक, कृवष

Abstract

वैदिक धर्म और गृह कृत्य प्रधान थे। मेगस्थनीज़ के अनुसार ब्राह्मणों का समाज में प्रधान स्थान था। दार्शनिक यद्यपि संख्या में कम थे किन्तु वे सबसे श्रेष्ठ समझे जाते थे और यज्ञ-कार्य में लगाए जाते थे। कौटिल्य के अनुसार त्रयी (अर्थात् तीन वेदों) के अनुसार आचरण करते हुए संसार सुखी रहेगा और अवसाद को प्राप्त नहीं होगा। तदनुसार राजकुमार के लिए चोलकर्म, उपनयन, गोदान, इत्यादि वैदिक संस्कार निर्दिष्ट किए गए हैं। ऋत्विक, आचार्य और पुरोहित को राज्य से नियत वार्षिक वेतन मिलता था। वैदिक ग्रंथों और कर्मकाण्ड का उल्लेख प्रायः तत्कालीन बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। कुछ ब्राह्मणों को जो वेदों में निष्णात थे, वेदों की शिक्षा देते थे तथा बड़े-बड़े यज्ञ करते थे, पालि-ग्रंथों में 'ब्राह्मणनिस्साल' कहा गया है। वे अश्वमेध, वाजपेय इत्यादि यज्ञ करते थे। ऐसे ब्राह्मणों को राज्य से कर-मुक्त भूमि दान में मिलती थी। अर्थशास्त्र में ऐसी भूमि को 'ब्रह्मदेय' कहा गया है और इन यज्ञों की इसलिए निंदा की गई है कि इनमें गौ और बैल का वध होता था, जो कृषि की दृष्टि से उपयोगी थे। किन्तु कर्मकाण्ड प्रधान वैदिक धर्म अभिजात ब्राह्मण तथा क्षत्रियों तक ही सीमित था।

References

कौटिल्य का लोक प्रशासन- देवेन्द्र प्रसाद राम

कौटिल्य का सामाजिक एवं राजनीतिक विचार- डा0 मणिशंकर प्रसाद, पृ0 2

कौटिल्य का लोक प्रकाशन-देवेन्द्र प्रसाद राम, पृ0 32

कौटिल्य का सामाजिक एवं राजनीतिक विचार- डा0 मणिशंकर प्रसाद, पृ0 2

वी.के. सुबरह्मण्यम, मक्ंसज्म ऑफ चाणक्य, न्यू दिल्ली, 1985, पृ0 2

कौटिल्य अर्थशास्त्र- अनिल कुमार मिश्र, प्रभात प्रकाशन, पृ0 28

प्रराचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति के 0सी0 श्रीवास्तव, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, 2000-2001।

प्रराचीन भारत में दूत पद्धति - आनन्द परकाश गौड़, लोक भारती परकाशन, इलाहाबाद, 2007

Downloads

Published

2017-12-30

How to Cite

Kumari, V., & Alam, F. (2017). मौर्य काल के धार्मिक दशा पर एक विवेचना. Universal Research Reports, 4(13), 176–179. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/420

Issue

Section

Original Research Article