उदय प्रकाश की कहानियों में धार्मिक तŸव
Keywords:
धर्म सामाजिक, सांस्कृतिकAbstract
वास्तव में धर्म सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त विश्वास ही होता है जो मानव समाज को अपनी पूर्व पीढ़ियों से सामाजिक विरासत के रूप में प्राप्त होता है। मानव बिना किसी को ठेस पहुँचाए सात्विक रूप से अपने जीवन कार्य करे और मानव कल्याण में संलग्न रहे, यही इसका उद्देश्य होता है। उसी के आधार पर जीवनक्रम को निर्धारित किया जाता है। धर्म आकस्मिक आपदाओं के समय मानव का संबल भी बनता है। इस सबके लिए धर्म में व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, कर्मकांड, मंत्र-तंत्र, भजन-कीर्तन, मनौती, तीज-त्योहार, विवाह-अनुष्ठान, परंपरा आदि को स्थान दिया गया है और मानव के आदर्श जीवन जीने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। लेकिन समाज में आए अप्रत्याशित बदलाव के कारण मानव स्वार्थी, लालची और धन-लोलुप हो गया है। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए धर्म और उसके नियमों का दुरुपयोग करने लगा है। लोगों ने धर्म को सर्वकल्याण की अपेक्षा स्वार्थ का अड्डा बना दिया है। परिणामस्वरूप धर्म ने विकृतियों का रूप धारण कर लिया है। धर्म के नाम पर लोगों को डराया जाता है। पाप-पुण्य और शकुन-अपशकुन का डर दिखाकर कर्मकांडी लोग भोले-भाले और गरीब लोगों से धर्म के नाम पर अनचाहा कर्म करवाते हैं। इन सब बातों को महसूस करने के बाद मन ग्लानि से भर जाता है। इसमें परिवर्तन लाने के लिए बार-बार मन में विचार पैदा होते हैं।
References
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वही- पृष्ठ 50
डाॅ. सुरेखा तांबे-कृष्णा सोबती के कथा साहित्य में चित्रित ग्रामीण जीवन, पूजा पब्लिकेशन, कानपुर-2011, पृष्ठ 113