हिंदी उपन्यासों में कथ्य: एक विवेचना
Keywords:
कथ्य, समीक्षाAbstract
कथ्य शब्द संस्कृत की ‘कथ्’ धातु से बना है, जिस का अर्थ है ‘कहना’। साहित्यकार युगीन परिवेश से साक्षात्कार करके अपने समाज का निरीक्षण करता है और उचित-अनुचित को ध्यान रखते हुए समाज के समुचित विकास की ओर संकेत करता है। साहित्यकार स्रष्टा एवं दृष्टा बनकर समाज की संभावनाओं को लक्ष्य करके अपने पाठकों से जो कुछ कहता है, वही उसके साहित्य का कथ्य कहलाता है। समीक्षक इनके अनुशीलन द्वारा ही कृति का विश्लेषण करता है। कथ्य क्यास होता है- समीक्षा के क्षेत्र में यह विवाद का विषय बना हुआ है। उसको अलग-अलग किस प्रकार पहचाना जा सकता है। कृति में कथ्य और शिल्प दोनों में से किस का महत्त्व अधिक है और इनका संबंध कैसा और क्याज है। वास्तव में देखा जाए तो कृति में कथ्य और शिल्प दोनों का अपना-अपना महत्त्व है, क्योंकि कथ्य और शिल्प के द्वारा ही कृति के स्वरूप का निर्माण होता है। इनके पारस्परिक स्वरूप के विवेचन-विश्लेषण के लिए लेखक की मनोवृति और परिस्थिति को जानना अनिवार्य है।
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