मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में सामाजिक चेतना

Authors

  • रानी

Keywords:

समाज, सामाजिक चेतना

Abstract

समाज एक ऐसा समूह होता है जो मिल -जुलकर साथ रहता है |... 550: 2348-5602 6 (२२ अर्थात्‌ मानव के समूह में रहने की प्रवृत्ति को समाज का नाम दे दिया समाज मैं व्यक्ति अपनी विभिन्‍न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक दूसरे पर आश्रित रहता है इन संबंधों का एक बहुत बड़ा जाल बन जाता है और इसी जाल को समाज की संज्ञा दी जाती है । समाज अत्यंत व्यापक है और एक गतिशील व्यवस्था है । यह हर समय ४ ४79227 हवस परिवर्तित होता रहता है। प्राचीन काल का समाज आधुनिक काल के समाज से बहुत भिन्न था | तब से लेकर आज तक के समाज में समय-समय पर उसके रीति-रिवाज ,ख़ान-पान ,बोली- भाषा, रहन - सहन ,वेशभूषा आदि आमूल परिवर्तन देखा जा सकता है। समाज के इस परिवर्तन में मनुष्य दूवारा बनाये जाने वाले नियमों की प्राथमिकता होती है। इन्हीं नियमों के अंतर्गत रहकर ही मानव समाज. विकास की ओर बढ़ता है । इस विकास के विषय में रामविलास शर्मा ने लिखा है कि -

References

रामविलास शर्मा ,मानव सभ्यता का विकास, पृष्ठ-3

हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियां, जय किशन प्रसाद ,खंडेलवाल ,पृू. -728

कलम का सिपाही ,प्रेसचंद ,अमृतराय, पू. -654

प्रेमचंद घर में ,शिवरानी देवी ,पृ..-85

वरदान ,प्रेमचंद ,पू..-74 6. वही, पू. 77

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Published

2018-03-30

How to Cite

रानी स. (2018). मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में सामाजिक चेतना. Universal Research Reports, 5(2), 92–95. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/599

Issue

Section

Original Research Article