संत नितानन्द और लोक संस्कृति

Authors

  • नीलम सहायक प्राध्यापक, हिन्दू कन्या महाविद्यालय, जीन्द।

Keywords:

संत नितानन्द, जनसामान्य, अहंकारों से विहीन, पैतृक सम्पदा

Abstract

लोक शब्द का अर्थ जनसामान्य से है। अर्थात् वह वर्ग जो संस्कार युक्त व पाण्डित्य के अहंकारों से विहीन होने के साथ ही परम्परा के प्रवाह में जीवित है। जिसमें न केवल भूत व वर्तमान अपितु भविष्य भी संचित रहता है। वहीं संस्कृति उस सीखे हुए व्यवहार का नाम है जो सामाजिक परम्परा के उन गुणों का समावेश है जो एक व्यक्ति को परिष्कृत एवं समृद्ध बनाती है। लोक संस्कृति तो उनतत्वों का समावेशन है जिसे सुरक्षितरखने के लिए किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं ये तो हमारी पैतृक सम्पदा की भांति ‘पीढ़ी - दर - पीढ़ी चलती है। जिसमें आध्यात्मिकता, संस्कृति और साहित्य तीनों का समन्वय है। डाॅ.पूर्णचन्द शर्मा जी तो मानते है -‘लोक साहित्य वह संजीवनी है जिसका स्पर्श पाकर मूच्र्छित प्रतिभा पुनः जीवन्त हो उठती है।’1लोक साहित्य में संचित लोक संस्कृति तो बहती हुई उस गंगा की भांति है जो अपना मार्ग स्वयं बनाती हुई विभिन्न संस्कारों और परम्पराओं को सहेजती हुई अनायास ही प्रवाहित रहती है। जिसमेंकेवल संस्कार व परम्पराओं रूपी प्रवाह शामिल रहता है। 

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Published

2014-04-30

How to Cite

नीलम ड. (2014). संत नितानन्द और लोक संस्कृति. Universal Research Reports, 1, 27–30. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/6

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Original Research Article