प्रेमचंद का कथा साहित्यः भारतीय किसान की स्थिति
Keywords:
भारतीय, हकसानAbstract
प्रेमचंद ने भारतीय किसान के समग्र यथार्थ का चित्रण अपने उपन्यासों में किया है। उन्होंने सिर्फ किसानों के आर्थिक शोषण का ही वर्णन नहीं किया बल्कि अपने साहित्य में उन्होंने भारतीय किसान की एक बोधगम्य पहचान कायम करने का प्रयास किया। प्रेमचंद ने उपन्यासों में किसान जमींदार, महाजन, नौकरशाही से संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है। किन्तु किसान अपनी मरजाद की रक्षा आजीवन कष्ट सहकर भी करता है। इस श्रमजीवी वर्ग को चूसने के लिए शासन, जमींदारों, पूँजीपति, महाजन, पुरोहित धर्म सभी के मिले जुले षड्यंत्र हैं। किन्तु वह विकट परिस्थितियों का भी डटकर सामना करता है। प्रेमचंद ने भारतीय किसान की समग्र समस्याओं को अपने उपन्यासों में उतारा है। बीसवीं सदी के दूसरे तीसरे दशक में देश की औपनिवेशिक व्यवस्था में किसानों की जो दशा थी, आज़ादी के उनहत्तर साल बाद क्या हालत है, यह हमें रोज अखबार और टीवी से पता चल रहा है। मीडिया पर आज के दौर में पूँजीपति या औद्योगिक घरानों के भारी नियंत्रण के बाद भी पिछले पंद्रह सालों में देश के तीन लाख से भी अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं और आज भी उन्हे कोई राहत नहीं है, भले ही कोई हज़ार करोड़ मुआवजे बाँटे गए हैं। किसानों की आत्महत्या या देश का कृषि संकट देश की भ्रष्ट व्यवस्था के कारण आज भी कम होने की बजाय निरंतर बढ़ रहा है।
References
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