लोकगीत का उदगम , परिभाषा एवं महत्तव
Keywords:
परिभाषा एवं महत्व, सम्भावना, स्वानुभूति से प्रेरितAbstract
'लॉकगीत का उद्गम, परिभाषा एवं महत्व :- गीत की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए महादेवी वर्मा ने लिखा हैं - “ सुख-दुख किम को भावावेशमवी अवस्था का विशेषकर णिने-चुने शब्दों मे स्वरसाधना को उपयुक्त चित्रण 'कर देना ही गीत है।'' इस परिभाषा से स्पष्ट है कि जब मानव कभी भी स्वानुभूति से प्रेरित होकर दुख तथा सुख संबदेना से आन्दोलित हुआ होगा, तभी गीतों के अजान स्वर उसके अधरों पर लरज उठे होगे! मानव के में चाहे वह सभ्य हो या असभ्य अपनी स्वानुभूति को अभिव्यक्त करने की इच्छा और क्षमता अवश्य रहती हैं और जब उसकी रागात्मक प्रवृत्ति लयबद्ध होकर निकलती है तभी गीत का रूप में जो भावनाएँ गीतबद्ध होकर अभिव्यक्त होती है, उन्हें लशितिक्लत' आदि मानव के हृदय से जो विकृत हरदा भावनाएँ निसृत हुई थीं वे ही आगे चलकर लेकिगीत के रूप समें परिवर्तित हो गई। जब जन -जीवन के भाव अभिव्यक्त होकर आकित हो जाते हैं तो उनमें वहाँ की मिट्टी बोलने लगती हैं, खेल गुनगुनाने लगते है और गालियारे तथा आँगन नाच उठते है। इन “गीतों के प्रारम्भ को प्रति एक सम्भावना हमारे पास है, पर उसके अन्त की कोई कल्पना नहीं। यह वह बड़ी धारा है, जिसमें अनेक छोटी-मोटी धाराओं ने मिल कर उसे सागर की तरह गम्भीर बना दिया है।
References
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कविता कौमुदी (5 वाँ भाग) - उपशीर्षक आमगीत हंस (फरवरी 936 ) जीवन के तत्व और काव्य के सिद्धान्त -आठवाँ अध्याय।