लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राजनीतिक विचारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Keywords:
राजनीतिक, राष्ट्रAbstract
लोकमान्य का व्यक्तित्व और संपूर्ण जीवन संघर्ष की एक संगठित कहानी है। इतिहास ने उन्हें जो प्रेरणा दी उस प्रेरणा से वशीभूत होकर उन्होंने नए इतिहास की रचना की थी। सी वाई चिंतामणि जो तिलक के आलोचक थे उन्होंने भी यह स्वीकार किया कि स्वाधीनता का उत्कट प्रेम उनके जीवन का स्थाई भाव था। यह सही है कि उनके लिए स्वराज धर्म था, स्वराज्य उनके लिए जीवन था। उनके अपने ही एक लेख के अनुसार स्वराज के बिना हमारा जीवन और हमारा धर्म व्यर्थ है। एक तरफ तिलक का यह दृष्टिकोण था और दूसरी तरफ ब्रिटिश शासन की निरंकुशता थी। लोकमान्य यह पूरी तरह से जानते थे कि स्वराज की मांग ही ब्रिटिश सरकार को अप्रसन्न करने वाली है। स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए जो उपाय किए जाएंगे। उनसे अंग्रेजों का अप्रसन्न होना स्वभाविक था। अध्यापन के कार्य से मुक्त होने के बाद केसरी और मराठा में जिन विचारों का प्रतिपादन किया उनसे ब्रिटिश शासन नाराज हुआ उन पर दो बार राजद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें कारावास का दंड भी भोगना पड़ा।
References
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पुण्यप्रतप्रथ प्रवशेष : जब प्रतलक को राजद्रोह के आरोप में भेजा गया ‘माण्डले’ जेल.