जयनंदन के उपन्यास विघटन में युवाओं के संघर्ष की गाथा

Authors

  • कुमार

Keywords:

उपन्यास विघटन

Abstract

हिदी उपन्यास हमारे समय के मनुष्य-समाज का एक सच्चा विश्लेषक रहा है। अपनी कथा-गरिमा के अनुकूल समाज के विभिन्न वर्गों और तबकों की समस्याओं से देश की जनता और पाठक को निरंतर साक्षात कराने में हिंदी उपन्यास की मुख्य भूमिका रही है। कई बार हम यह भी अनुभव करते हैं कि हमारे मनुष्य समाज का कोई वर्ग किस प्रकार का जीवनयापन कर रहा है, उसकी असलियत किस यथार्थ पर टिकी है, उसकी लाचारियां क्या हैं, क्या विवशताएं हैं- इन सबकी जानकारी हमें किसी रचनात्मक कृति के माध्यम से ही हो पाती है। आज हम यह पाते हैं कि साहित्य अपनी प्रचलित और नयी विधा में अधिक सूचनात्मक हो रहा है। इससे समाज के विभिन्न वर्गों की आपसदारी नये विवेक का निर्माण भी कर रही है- इसमें संदेह नहीं है। यह भी हम जानते हैं कि सतत बदलावों के दौर में साहित्य का परंपरागत रूप भी बदला है। इसीलिए साहित्य की विधाएं भी इससे पर्याप्त प्रभावित रही हैं। भिन्न-भिन्न प्रांतों के रचनाकारों ने वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तन के प्रभावों को स्थानीय स्तर पर आंकने का सार्थक श्रम किया है। 

References

हिंदी आलोचना की पाररिावर्क शब्दािली,डॉ. अमरनाथ राजकमल प्रकाशन

पानी वबच मीन वपयासी,किानी,जयनंदन

छोटा हकसान किानी संग्रि,जयनंदन

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Published

2022-03-30

How to Cite

कुमार अ. (2022). जयनंदन के उपन्यास विघटन में युवाओं के संघर्ष की गाथा. Universal Research Reports, 9(1), 45–51. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/963

Issue

Section

Original Research Article