भारतीय खिलाड़ियों के व्यक्तित्व पर एक लघु अध्ययन
Keywords:
व्यक्तित्व, आंतरिक और व्यवहारAbstract
व्यक्तित्व एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है। इसका प्रयोग लोगों द्वारा व्यापक रूप में किया जाता है। किसी के रंग रूप, शारीरिक बनावट, वेशभूषा, सौंदर्य आदि बाह्य लक्षणों के आधार पर प्रायः व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में बताया जाता है। इस तरह व्यक्ति के शरीर की बाहरी दिखावट को उसका व्यक्तित्व समझा जाता है। परंतु यह पूर्ण रूप से सत्य और उपयुक्त नहीं है। क्योंकि एक अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के लिए उसकी शारीरिक बनावट के अतिरिक्त उसके आंतरिक भावनाएं, उनकी सोच, उनकी मानसिकता, चिंतन शक्ति, सामाजिकता, व्यवहार, आत्माविश्वास, आत्मनिर्भरता, प्रभुत्व भावना जैसे महत्वपूर्ण लक्षणों को भी देखा जाता है आंतरिक एवं बाहरी रूपों से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है और वह एक अच्छे व्यक्तित्व वाला इंसान बन जाता हैं। एक व्यक्ति में अच्छे एवं बुरे दोनों ही गुण होते हैं व्यक्ति के इन गुणों के आधार पर उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में बताया जाता है।
References
बिन्थु माथवन एस। ‘‘अपर बॉडी एंथ्रोपोमेट्रिक पैरामीटर्स और हैंडबॉल प्लेयर्स के थ्रोइंग परफॉर्मेंस के बीच संबंध।‘‘ इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड रिसर्च पब्लिकेशन्स (2012), खंड 2(9)ः 1-3।
ब्रैडशॉ ई। ‘‘जिमनास्टिक्स में लक्ष्य-निर्देशित रनिंगः वॉल्टिंग का एक प्रारंभिक अन्वेषण‘‘। इंट जे। विकार खाओ। 2013 सितंबर, 34(2)ः.244-250.
चक्रवर्ती, एसके, ‘‘रिलेशनशिप ऑफ आर्म स्ट्रेंथ, लेग स्ट्रेंथ, ग्रिप स्ट्रेंथ, एजिलिटी, फ्लेक्सिबिलिटी एंड बैलेंस टू परफॉर्मेंस इन जिम्नास्टिक‘‘, अप्रकाशित डॉक्टरेट थीसिस, जीवाजी यूनिवर्सिटी, 2020।
चैधरी, बिनोद बोरमन, आलोक सेन और बर्मन, सुजान। ‘‘पश्चिम मेदिनीपुर के इंटरडिस्ट्रिक्ट खिलाड़ियों की चयनित समन्वय क्षमता के साथ कबड्डी प्रदर्शन का संबंध।‘‘ खेल और शारीरिक शिक्षा के आईओएसआर जर्नल (2014) खंड 1(6)ः 50-52।
देवराजू के। ‘‘कॉलेज स्तर के खिलाड़ियों के बीच चयनित मनोवैज्ञानिक चर से कबड्डी में खेलने की क्षमता की भविष्यवाणी।‘‘ इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रीसेंट रिसर्च एंड एप्लाइड स्टडीज (2014), खंड 1, अंक 6(16)ः 65-67
देवराजू, के। और कालिदासन, आर। ‘‘कॉलेज स्तर के खिलाड़ियों के बीच चयनित मानवशास्त्रीय और भौतिक चर से कबड्डी खेलने की क्षमता की भविष्यवाणी।‘‘ सूचना प्रौद्योगिकी के एशियाई जर्नल (2012), 11(4)ः 131-134.