विरह का इन्द्रधनुष में स्त्री विमर्श एवं संघर्ष
Keywords:
स्त्री विमर्श, सामाजिक यथार्थ, पीड़ा की अभिव्यक्तिAbstract
कैलाश चन्द्र शर्मा एक संवेदनशील रचनाकार हैं, जिन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को अपनी रचनाओं में समेटने का प्रयास किया है। विरह का इन्द्रधनुष” एक उनकी एक औपन्यासिक कृति है जिसके माध्यम से लेखक ने मध्यवर्गीय परिवार के जीवन-संघर्ष को बड़ी गम्भीरता के साथ दिखाया है।
लेखक की मान्यता है कि, “यह कथा नहीं है अपितु जीवन की यथार्थता का दर्पण है जिसमें मानवीय भावनाओं को उकेरा गया है।” 1
इस उपन्यास के माध्यम से लेखक स्वीकार करता है कि विरह मनुष्य को लाचार व पंगु नहीं बनाता अपितु उसमें ऊर्जा और ऊष्मा का संचार करता है। इस विछोह की स्मृतियां मनुष्य को आगे बढने का एक ठोस आधार प्रदान करती हैं और शायद इसीलिए मनुष्य अपने जीवन की धरोहर मानते हुए इन्हें सुरक्षित रखना चाहता है.
References
संपादक रीना कुमारी, कैलाशचन्द्र शर्मा का बहुआयामी सृृजन, पृष्ठ 109
कैलाशचन्द्र शर्मा, कुछ-कुछ यादें, पृष्ठ 21-33
कैलाशचन्द्र शर्मा, कुछ-कुछ यादें, पृष्ठ 14-15
-------------वही------ पृष्ठ 19
कैलाशचन्द्र शर्मा, कुछ-कुछ यादें, पृष्ठ 22
-------------वही------ पृष्ठ 32
संपादक रेणुका इसरानी, कर्मपथ- कै.लाशचन्द्र शर्मा का बहुआयामी सुजन, पृष्ठ 247
संपादक, रीना कुमारी, कैलाशचन्द्र शर्मा का बहुआयामी सृृजन, पृष्ठ 89
कैलाशचन्द्र शर्मा, विरह का इन्द्रधनुष, पृष्ठ 107
कैलाशचन्द्र शर्मा, विरह का इन्द्रधनुष, पृष्ठ 112