वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतिय

Authors

  • प्रोमिला

Keywords:

चुनौतियों के संदर्भ

Abstract

आज आवश्यकता है भारतीय वाड्.गमय में स्थापित उच्चादर्शों, मूल्यों को समकालीन समस्याओं एवं चुनौतियों के संदर्भ में रखकर देखा जाए एवं वैश्विक दृष्टि सम्पन्न मानवीय मूल्यों एवं तकनीकी उपलब्धियों को आत्मसात करते हुए उन आदर्शो मूल्यों को स्थापित किया जाये जो भौतिकवादी आदर्शों से उत्पन्न अन्तर्विरोधों एवं उपभोक्ता केन्द्रित बाजारवादी व्यवस्था के चंगुल से सम्पूर्ण मानवता को बचा सके। यह आलेख भारतीय समाज विज्ञानों के समक्ष खड़ी इन्हीं चुनौतियांे के परिपे्रक्ष्य को प्रस्तुत करता है।

References

दादा भाई नौरौजी और रमेशचन्द्र दत्त की पुस्तकें ब्रिटिश राज का आर्थिक विश्लेषण हैं, हिन्द स्वराज के दर्शन से संबद्ध कुछ भीं उनमें नहीं है। शेष सभी अठारह पुस्तकें दार्शनिक रचनाएं हैं जो सभी पश्चिमी चिंतकों की हैं।

गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण, गोधरा, 3 नवंबर, 1917

उहारण के लिए देखें, ‘गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण, 3 नवंबर 1917

चर्खे को ‘भविष्य के भारत की सामाजिक व्यवस्था’ का आधार बनाने की बात गाँधी 1940 में भी करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गई गुरु-गंभीर आलोचनाओं (देखें, इनका ‘‘स्वराज साधना’’ शीर्षक लेख) के बीस वर्ष बाद भी, बिना उसका कहीं उत्तर दिए।

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Published

2017-12-30

How to Cite

प्रोमिला. (2017). वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतिय. Universal Research Reports, 4(13), 94–98. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/402

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Original Research Article