महाभाष्यप्रदीपगत रुप्रकरण का विवेचनात्मक अध्ययन
Keywords:
वायुरत्र, विवेचनात्मक, परम्परा, संस्कृत-व्याकरणAbstract
संस्कृत-व्याकरण की परम्परा में त्रमुनि-व्याकरण का विशेष स्थान है। पाणिनीय-सूत्रों पर कात्यायन की वार्तिकों से तथा पतजूजलि के हाभाष्य से एक पर्ण-व्याकरण का निर्माण हुआ है। महाभाष्य पर लिखी गई कैयट की प्रदीप-टीका अत्यन्त विस्तार से भाष्यकार के ततों का खण्डन-मण्डन करती है। इस शोध-पत्र में पाणिनीय-अष्टाध्यायी के प्रकरण के महाभाष्यप्रदीपगत व्याख्यान को अनुसंधान का विषय बनाया गया हैं । भ्रष्टाध्यायी में रुत्वप्रकरण का आरम्भ 'ससजुषो रुः” सूत्र से होता है। इस सूत्र काअर्थ है कि पदान्त सकार और सजुष् को रुत्वादेश होता है। यथा - पग्निरत्र, वायुरत्र, सजू्देवेभि: इससे अग्रिम सूत्र है - 'अवया: श्वेतवा: पुरोडाश्च” रस सूत्र से अवया:, श्वेतवा: तथा पुरोडा: रुप निपातन से सिद्ध होते हैं।
References
पाणिनीय अष्टाध्यायी 8-2-66
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पाणिनीय अष्टाध्यायी- 8-2-70