महाभाष्यप्रदीपगत रुप्रकरण का विवेचनात्मक अध्ययन

Authors

  • उमेश कुमार सहायक प्राध्यापक, सत्‌जीन्दाकल्याणामहाविद्यालय, कलानौर, रोहतक

Keywords:

वायुरत्र, विवेचनात्मक, परम्परा, संस्कृत-व्याकरण

Abstract

संस्कृत-व्याकरण की परम्परा में त्रमुनि-व्याकरण का विशेष स्थान है। पाणिनीय-सूत्रों पर कात्यायन की वार्तिकों से तथा पतजूजलि के हाभाष्य से एक पर्ण-व्याकरण का निर्माण हुआ है। महाभाष्य पर लिखी गई कैयट की प्रदीप-टीका अत्यन्त विस्तार से भाष्यकार के ततों का खण्डन-मण्डन करती है। इस शोध-पत्र में पाणिनीय-अष्टाध्यायी के प्रकरण के महाभाष्यप्रदीपगत व्याख्यान को अनुसंधान का विषय बनाया गया हैं । भ्रष्टाध्यायी में रुत्वप्रकरण का आरम्भ 'ससजुषो रुः” सूत्र से होता है। इस सूत्र काअर्थ है कि पदान्त सकार और सजुष्‌ को रुत्वादेश होता है। यथा - पग्निरत्र, वायुरत्र, सजू्देवेभि: इससे अग्रिम सूत्र है - 'अवया: श्वेतवा: पुरोडाश्च” रस सूत्र से अवया:, श्वेतवा: तथा पुरोडा: रुप निपातन से सिद्ध होते हैं।

References

पाणिनीय अष्टाध्यायी 8-2-66

पाणिनीय अष्टाध्यायी-8-2-67

पाणिनीय अष्टाध्यायी-8-2-68

पाणिनीय अष्टाध्यायी-5-4-87

व्याकरण महाभाष्य, भाग-6, पृष्ठ क30

पाणिनीय अष्टाध्यायी -8-2-69

पाणिनीय अष्टाध्यायी - 6--68

पाणिनीय अष्टाध्यायी - 4-4-62

पाणिनीय अष्टाध्यायी-7--3

पाणिनीय अष्टाध्यायी-ग--63

व्याकरण महाभाष्य, भाग-6, पृष्ठ-30 व्याकरण महा०, प्रदीप टीका, भाग-6, पृष्ठ

महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि, नारायणी टीका, पृष्ठ-395

पाणिनीय अष्टाध्यायी- 8-2-70

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Published

2017-09-30

How to Cite

कुमार उ. (2017). महाभाष्यप्रदीपगत रुप्रकरण का विवेचनात्मक अध्ययन . Universal Research Reports, 4(5), 16–20. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/167

Issue

Section

Original Research Article