भारतीय योग ग्रन्थों में मोक्ष की अवधारणा
Keywords:
मोक्ष, बंधन, अभिशापAbstract
मानव के हृदय पटल पर मुक्ति की इच्छा आज कोई नया विषय नहीं; अपितु यह युगो-युगों से जीव के जीवन का अहम हिस्सा है, तथा जब तक वह सृष्टि रहेगी, इसकी प्रमुखता बनी रहेगी। आधुनिक युग में मोक्ष, निर्वाण, कैवल्य, परमपद, मुक्ति आदि के नाम पर अपने निजी स्वार्थ की पूर्मि हेतू बहकाया जाता हैं जिसके 'फलस्वक समाज में असमानता अशान्ति व दुराचार बढ़ता है। आज ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो चुकी, जो समाज व राष्ट्र के लिए एक अभिशाप के रूप में उमर कर सामने आई हैं। व्यक्ति का मोक्ष की ओर आकर्षित होना, सहज व सरल हैं। क्योंकि आत्मा परमात्मा का अंश है, उसका उस ओर बढ़ना स्वाभाविक हे। अतः यह ज्ञान (समझ) लेना परम आवश्यक है कि यह मुक्ति क्या है? कहें। से आई हैं? कहाँ इसका विलय होगा? जीवात्मा के लिए इसका क्या महत्व हें? इस भावना के बिना तुम्हारे सभी कार्य व्यर्थ हैं।
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