लोकगाथा का स्वरूप , परिभाषा एवं उत्पत्ति
Keywords:
परिभाषा एवं उत्पत्ति, महाविद्यालय, सूर्यकरण पारीक, महाराष्ट्रAbstract
छोट्राम किसान स्नातकोत्तर, महाविद्यालय, जीन्द। भारत में कथात्मक गीतों के लिए कोई निश्चित नामकरण प्राप्त नहीं होता। 'भिन्न-'भिन्न स्थानों पर इसके भिन्न-भिन्न नाम हैं। गुजरात में 'कथागीत' कहते हैं । “राजस्थानीलोकगीत' के लेखक श्री सूर्यकरण पारीक ने इसे 'गीतकथा' कहा है। महाराष्ट्र में इन कथागीतों को *पैवाड़ा' कहते हैं। सारे उत्तर भारत में इन लम्बे कथागीतों के लिए कोई निश्चित नाम नहीं मिलता। प्राय: वर्ण्य-विषय के आधार पर ही इन गीतों का नामकरण कर दिया गया है, जैसे राजा गोपीचन्द के गीत, हीरराँफा के गीत, सोनीमहीवाल के गीत, कुँवर सिंह, विजयमल, आल्हा आदि। प्रियर्सन ने इन कथागीतों को 'पापुलर साँग' कहा है। परन्तु इस नाम में कोई औचित्य दिखाई नहीं देता। क्योंकि “लोकप्रिय गीत' तो और भी होते हैं।
References
लोकसाहित्य - श्री 'कवेरचन्द मेघाणी - पृ0 50
राजस्थानी लोकगीत - पृ0 78
भोजपुरी लोकसाहित्य अध्ययन - पृ0 492
हिन्दी साहित्य कोश () - सं0 धीरेनदर वर्मा -
पृ0 746 प्रस्तावना - पृ0 74 वही - पृ0 75