गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं में समन्वयवाद

Authors

  • कुमारी

Keywords:

गोस्वामी तुलसीदास, रचनाओं

Abstract

गोस्वामी तुलसीदास एक महान् भक्त, प्रबुद्ध कवि, समन्वयवादी लोकनायक, समाज सुधारक, उपदेशक एवं तत्व द्रष्टा दार्शनिक थे। वे एक प्रबुद्ध विचारक एवं तत्व चिन्तक महापुरुष थे। तुलसी हिन्दी के उन महान् कवियों में अग्रगण्य है, जिनके काव्य का मूल उददे्श्य ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ है। वे कविता का मूल उददे्श्य लोकमंगल का विधान करना मानते है। तभी वे ‘रामचरितमानस’ में लिखते हैः ‘‘कीरति भनिति भूति भलसोई सुरसरि सम सब कहं हित होई ।।’ तुलसी का सम्पूर्ण काव्य लोकमंगल का विधान करने वाला हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ काव्य है। तुलसी भारतीय जनता के प्रतिनिध कवि कहे जा सकते है। वे समाज की एकता व कल्याण के लिए विभिन्न धर्मों विविध मतों, अनेक मान्यताओं व रीति-रिवाजों में समन्वय की स्थापना करके लोकमंगल करना चाहते थे।

 

References

रामचरितमानस-तुलसीदास, गीताप्रेस, गोरखपुर

विनयपत्रिका-तुलसीदास, हरीश विश्वविद्यालय प्रकाशन, आगरा

कवितावली-तुलसीदास

तुलसीदास एक विशेष अध्ययन, हरीश विश्वविद्यालय प्रकाशन आगरा

रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेद्वी एक विशेष अध्ययन, हरीश विश्वविद्यालय प्रकाशन आगरा।

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Published

2018-03-30

How to Cite

कुमारी र. (2018). गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं में समन्वयवाद. Universal Research Reports, 5(2), 144–148. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/612

Issue

Section

Original Research Article