भारत में भूगोल का विकास और प्रकृवत: एक अध्ययन

Authors

  • Gayatri

Keywords:

भौगोवलक विविधता, भू-राजनैवतक

Abstract

भारत का भूगोल या भारत का भौगोवलक स्िरूप से आशय भारत में भौगोवलक तत्िों के वितरण और इसके प्रवतरूप से है जो लगभग हर दृवि से काफ़ी विविधतापूणण है। दविण एवशया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यिती प्रायद्वीप पर वस्ित यह देश अपने 3287,263 िगण ककमी िेत्रफल के साि विश्व का सातिााँ सबसे बडा देश है। साि ही लगभग 1.3 अरब जनसंख्या के साि यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अवधक जनसंख्या िाला देश भी है। भारत क़ी भौगोवलक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्िलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल वहमालय क़ी पिणतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दविण में विस्तृत िंहंद महासागर, एक ओर ऊाँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो िहीं विशाल और समतल वसन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, िार के विस्तृत मरुस्िल में जहााँ विविध मरुस्िलीय स्िलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। ककण रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहााँ लगभग हर प्रकार क़ी जलिायु भी पायी जाती है। वमट्टी, िनस्पवत और प्राकृवतक संसाधनो क़ी दृवि से भी भारत में काफ़ी भौगोवलक विविधता है। प्राकृवतक विविधता ने यहााँ क़ी नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साि वमलकर इसे आर्िणक, सामवजक और सांस्कृवतक विविधता प्रदान क़ी है। इन सबके बािजूद यहााँ क़ी ऐवतहावसक-सांस्कृवतक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में पररभावित करती है। वहमालय द्वारा उत्तर में सुरवित और लगभग 7 हजार ककलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साि वहन्द महासागर के उत्तरी शीिण पर वस्ित भारत का भू-राजनैवतक महत्ि भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख िेत्रीय शवि के रूप में स्िावपत करता है।

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Published

2018-03-30

How to Cite

Gayatri. (2018). भारत में भूगोल का विकास और प्रकृवत: एक अध्ययन. Universal Research Reports, 5(3), 177–182. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/674

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Original Research Article