मानव जीवन में भक्ति का महत्व
Keywords:
संसार में ज्ञानियों, आत्मा- प्रमात्माAbstract
भक्ति को लोग अराधना के रूप में मानते है। यह सत्य है। लेकिन यह अराधना के अतिरिक्त एक जीवन शैली भी है। मनोविज्ञान भी हैं, जिसके द्वारा हमअपने जीवन की तामसिक अवस्थाओं से मुक्त होकर, सात्विक अवस्था में स्थिर होकर आत्मा- प्रमात्मा के सम्बन्धों का अनुभव कर सकते है। यही भक्ति की कहानी है। लोग मानते हैं कि भक्ति एक साधना है, लेकिन वास्तव में “मक्ति” एक जीवन शैली हैं, जीवन जीने की एक कला है। इस संसार में ज्ञानियों द्वारा दो प्रकार की भक्ति बताई गई है। परा-भक्ति और अपरा भक्ति, जो भक्ति ईशवर कं प्रति अपना प्रैम सम्बन्ध स्थापित करती है, यह आध्यात्मिक भक्ति है। जौ कामनाओं और सांसारिक सुखों के लिए की जाती है, वह अपरा-भक्ति कहलाती है। “धघर्मामृत्त यथौक्त जौ, नित निष्कामहि सैव। भक्त श्रेष्ट दयाल सो अति पिय मोहि कौन्तेय ।
References
- गीता मानस अपरौक्षा अनुभूति--. स्वामी ऑकारानन्द सरस्वती पृष्ठ सं0- 37
- मक्ति साधना स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती प्रष्ठ सं0- 28
- साधना स्वामी शिवानन्द सरस्वती
भक्ति साधना- स्वामी रंजानन्द सरस्वती
- सक्ति सागर गन्थ- शी स्वामी चरणदास जी
- घेरण्ड संहिता- स्वामी निरंजना सरस्वती