गीता में वर्णित ध्यान

Authors

  • बेला रानी M.A. Yoga, Department of Yoga, CRSU, Jind
  • जयपाल राजपूत Assistant Professor, Department of Yoga, CRSU,Jind

Keywords:

योग, साधक, सर्वोच्च लक्ष्य, अभ्यास, दीपक की लौ

Abstract

 ध्यान मे साधक स्वंय से जुड़ने का प्रयास करता है। ध्यान साधना की वह अवस्था होती है जो साधक को शीघ्र ही सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होती है। ध्यान का अर्थ है चित्त में  उठने वाली वृति रूपी कलगों को पूर्णतया शात मरना जिस प्रकार दीपक की लौ जब तक चलायमान है तब तक वह स्थिर नहीं है। जब तक मन इधर-उधर भटकता रहता है तब तक मन ध्यान की अवस्था में नहीं पहुँच पाता ध्यान स्वयं से जुड़ने का अभ्यास है। ध्यान के द्वारा हमारे शरीर को अनेक लाभ पहुँचते है । 

References

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योग द्वारा रोगों का उपचार (महेश दयाभाई पटेल) ISBN: 978-8-7879-630-7

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Published

2017-12-30

How to Cite

रानी ब., & जयपाल राजपूत. (2017). गीता में वर्णित ध्यान . Universal Research Reports, 4(8), 77–83. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/254

Issue

Section

Original Research Article