गीता में वर्णित ध्यान
Keywords:
योग, साधक, सर्वोच्च लक्ष्य, अभ्यास, दीपक की लौAbstract
ध्यान मे साधक स्वंय से जुड़ने का प्रयास करता है। ध्यान साधना की वह अवस्था होती है जो साधक को शीघ्र ही सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होती है। ध्यान का अर्थ है चित्त में उठने वाली वृति रूपी कलगों को पूर्णतया शात मरना जिस प्रकार दीपक की लौ जब तक चलायमान है तब तक वह स्थिर नहीं है। जब तक मन इधर-उधर भटकता रहता है तब तक मन ध्यान की अवस्था में नहीं पहुँच पाता ध्यान स्वयं से जुड़ने का अभ्यास है। ध्यान के द्वारा हमारे शरीर को अनेक लाभ पहुँचते है ।
References
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योग द्वारा रोगों का उपचार (महेश दयाभाई पटेल) ISBN: 978-8-7879-630-7
घेरण्ड संहित (स्वामी निरंजनान्द सरस्वती) ISBN: 978-8-86336-35-9
श्रीमद्भगवद्गीता (गीता प्रेस गोरखपुर) (श्री वेदव्यास जी) पवर एवं परम्परिक योग (विक्रम सिंह) ISBN : 978-8-929206-2