वर्तमान जीवन शैली प्रत्यहार की भूमिका
Keywords:
योग साधना, प्रत्यहार , वस्तु, इन्द्रियां, तेज शस्त्रAbstract
प्रत्यहार अष्टागं योग का पााँचवा अंग हैं योगी को इसकी अत्यंत आवश्यकता हैं | यदि इन्द्रियां अपने स्वभाव को प्राप्त करने के लिये अपने विषय की ओर दौड़ती हैं उस समय इन्द्रियां को उस और न जानेकी क्रिया को प्रत्यहार कहते हैं | इन्द्रियों को अपने विषय से हटाकर बार-बार उन्हें आत्मा की तरफ ले जाना चाहिए | जिस प्रकार से कछुवा अपने पैर समेट लेता है अथवा एक गरीब जाड़ो के दिनों मे अंग समेट कर सोता है | जिस प्रकार से माँ अपने बच्चे को खिलाती है और बालक वस्हैतु की तरफ ललचाता है जिस प्रकार से बालक सांप, आग या किसी तेज शस्त्र को पकड़ने को दौड़ता हैं | बालक को यह पता नहीं है कि ये सारी वस्तु अगर हाथ से पकडूंगा तो मुझे कोई कष्ट होगा |
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