वर्तमान जीवन शैली प्रत्यहार की भूमिका

Authors

  • Reena M.A. Yoga, Department of Yoga, CRSU, Jind
  • Dr. Jaipal Rajput Assistant Professor, Department of Yoga,CRSU, Jind

Keywords:

योग साधना, प्रत्यहार , वस्तु, इन्द्रियां, तेज  शस्त्र

Abstract

प्रत्यहार अष्टागं योग का पााँचवा अंग हैं  योगी को इसकी अत्यंत आवश्यकता  हैं | यदि इन्द्रियां  अपने स्वभाव को प्राप्त करने के लिये अपने विषय की ओर दौड़ती हैं  उस समय इन्द्रियां को उस और न जानेकी क्रिया  को प्रत्यहार कहते  हैं | इन्द्रियों को अपने विषय से हटाकर बार-बार उन्हें आत्मा की तरफ ले जाना चाहिए | जिस प्रकार से कछुवा अपने पैर समेट लेता  है अथवा एक गरीब जाड़ो के दिनों मे अंग समेट कर सोता है | जिस प्रकार से माँ अपने बच्चे को खिलाती  है और बालक वस्हैतु की तरफ ललचाता है  जिस प्रकार से बालक सांप, आग या किसी तेज  शस्त्र को पकड़ने को दौड़ता हैं | बालक को यह पता  नहीं है कि  ये सारी वस्तु अगर हाथ से पकडूंगा तो मुझे कोई कष्ट होगा |

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Published

2017-12-30

How to Cite

Reena, & Dr. Jaipal Rajput. (2017). वर्तमान जीवन शैली प्रत्यहार की भूमिका. Universal Research Reports, 4(8), 61–64. Retrieved from https://urr.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/250

Issue

Section

Original Research Article