नागार्जुन की कहानियों में दलितों के समाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठान का विमर्श
Keywords:
नागार्जुन,, दलित, समाजिक प्रतिष्ठाAbstract
नागार्जुन (विशेषकर उसने अपने काव्य महाकाव्य ‘‘मेघधूत‘‘ के माध्यम से) एक प्रमुख संस्कृत कवि थे जो अपनी कविताओं में समाज की विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करते थे, जिसमें दलितों के समाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठान का भी विशेष महत्व था। नागार्जुन की कहानियाँ विभिन्न वर्गों और समाज के लोगों की जीवनी को छूने का प्रयास करती हैं, जिसमें दलित समुदाय का भी समावेश है। उनकी कहानियों में, दलितों के जीवन की वास्तविकता, उनकी संघर्ष, और उनके सामाजिक स्थिति का उदाहरण दिया गया है।
नागार्जुन की कविताओं में दलितों का समाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठान उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं के माध्यम से प्रकट होता है। उनकी कविताओं में दलितों के जीवन की संघर्ष और उनके समाज में स्थान की अवस्था का सटीक चित्रण किया गया है। उन्होंने समाज में दलितों के प्रति अन्याय और उनकी प्रतिष्ठा की कमी को उजागर किया।
नागार्जुन की कहानियों में दलितों के समाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठान का विमर्श उनकी कविताओं के माध्यम से एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है और हमें समाज में समानता और न्याय के प्रति समझदारी को बढ़ावा देता है।
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